Monday, December 13, 2010

Pani Ke Sankat Se Bhachana Hai





नर्मदा - पूर्णा - ताप्ती को सतपुड़ा, महादेव तथा मेकेल पहाड़ों से जोड़ कर अकाल से बचाया जा सकता है
बैतूल   नैसर्गिक धरोहर पर्वतीय क्षेत्र का उपयोग कर नदियों तथा नहरों का जल अन्य प्रांतों तक सफलता से पहुंचाने में कारगर सिद्घ हो सकते हैं. इस प्रकार पर्वतीय कछारों का उपयोग नदियों के जोडऩे हेतु तथा पर्यावरण की रक्षा के साथ वनखेती उत्पाद, पेयजल की भीषण समस्या के अलावा आदिवासी पर्वतीय क्षेत्रों में फलोत्पादन को बढ़ावा दिया जा सकता है. वहीं पर वन औषधियों की खेती मुमकीन हो सकती है. जिससे राष्टï्रीय संपत्ति का तेजी से इजाफा किया जा सकता है. जैसे महत्वपूर्ण योजनाओं को पर्वतीय कछारों का उपयोग कर, नर्मदा, पैनगंगा, कन्हान, वर्धा, पूर्णा, ताप्ती जैसी बड़ी-बड़ी नदियों का जल अथवा जल की धारा पर्वतीय कंधारों के बीच से लायी जा सकती है, जैसे विचार शहर के विधीतज्ञ अॅड. धनंजय धर्माधिकारी द्वारा देशहित में व्यक्त किए गए. धर्माधिकारी के अनुसार भारत वर्ष कृषि प्रधान देश है. विदर्भ प्रदेश का संपूर्ण इलाका पर्वतीय क्षेत्र से घिरा हुआ तथा इस प्रदेश के किसानों का मुख्य व्यवसाय खेती है. विदर्भ के खेती व्यवसाय पर अन्य सभी आर्थिक व्यवहार निर्भर करते है. परंतु दुर्भाग्य की बात है कि विगत चार-पांच वर्षो से नैसर्गिक बदलाव के कारण बारिश ने अपना मुंह इस प्रदेश से मोड़ लिया है. परिणामत: किसानों को पर्याप्त बारिश के अभाव से पुस्तैनी व्यवसाय खेती करना काफी कठिन हो चुका है. खेती का व्यवसाय कुंठित होने के कारण किसानों द्वारा बैंक से लिये गये कर्ज की राशि का भुगतान समय पर होने से तथा ब्याज की राशि भरमसा बढऩे से उनके द्वारा मजबूर होकर आत्महत्याएं की जा रही है. खेती व्यवसाय में जुड़े हुए मजदूरों को मजदूरी न मिलने के कारण इन परिवारों द्वारा रोजी-रोटी की व्यवस्था में अन्यत्र क्षेत्रों में खोज की जाती है. जिसके कारण देहातों से नागरिकों ने अपना मुंह मोड़ लेने के कारण ग्रामों में उदासीनता देखी जा रही है. यही अवस्था भविष्य में बनी रही तो विदर्भ प्रदेश में शीघ्र ही अकालतुल्य स्थिति का अनुभव किया जा सकेगा। ठीक इन्हीं परिस्थितियों से बचने के लिये वर्तमान में शासन के पास कोई भी व्यवस्था नहीं है. परंतु शहर के जागृत तथा प्रतिष्ठिïत नागरिक धर्माधिकारी ने पर्वतीय श्रृंखला का नैसर्गिक रूप में उपयोग कर मध्यप्रदेश की नदियां अथवा उनके मुख्य प्रवाहवाली जलधारा को विदर्भ में लाने से भविष्य में उपस्थित होने वाले अकाल से बचने की पर्यायी व्यवस्था ढूंढ निकाली है. भौगोलिक दृष्टिï से देखा जाए तो विदर्भ प्रदेश यह मध्यप्रदेश तथा छत्तीसगढ़ की तटवर्ती सीमाओं से जुड़ा हुआ प्रदेश है. इसका लगभग बहुत बड़ा हिस्सा सतपुड़ा पर्वत श्रेणी तथा अजंठा पर्वतीय महादेव पर्वत, मेकेल पर्वत, श्रृंखलाओ से सटे हुए है. इन पर्वतीय श्रृंखलाओं से कई नदियां निरंतर कल-कल करती हुई बहती थी. इन नदियों में जल का अभाव होने से इन नदियों में जल का अभाव होने से इन नदियों को सुखी नदियों का स्वरूप प्राप्त हो रहा है. हालांकि इस पर्वतीय श्रृंखला में संबंधित प्रशासन द्वारा अनेक बांधों का निर्माण कार्य किया गया. लेकिन जल के अभाव में शासन का लक्ष्य पूरा नहीं हो पाया. इसलिए जल की आवश्यकता तथा पर्यावरण की रक्षा को लेकर अॅड. धर्माधिकारी द्वारा अचलपुर तथा विदर्भ के निवासियों की ओर से यह मांग प्रस्तुत की है कि वर्तमान में देश की नदियों को जोडऩे की महत्वकांक्षी योजना के तहत जिस प्रकार केन तथा बेतवां नदियों को प्राथमिक रूप से जोडऩे हेतु योजना का हाल ही में उत्तर प्रदेश तथा मध्यप्रदेश के बीच प्रधानमंत्री मनमोहनसिंग की उपस्थिति में राज्यों के मुख्यमंत्री मुलायमसिंग यादव तथा बाबूलाल गौर  ने केन्द्रीय जल संसाधन मंत्री प्रिय रंजन मुंशी के साथ त्रिपक्षीय समझौते के मसूदे को अंतिम रूप दिया है तथा योजनाओं को अमल में लाने हेतु हस्ताक्षर किए. जिससे नदियों को जोडऩे के कार्य को राष्टï्रीय अजेंडे पर लाने वाले पूर्व प्रधानमंत्री अटलबिहारी वाजपेई ने इस प्रकार के दो प्रदेशों से बहती नदियों को जोड़ऩे के कार्य की प्रशंसा की है. उत्तर प्रदेश तथा मध्यप्रदेश की नदियों में जिनमें  केन तथा बेतवा का समावेश है.
    इन नदियों के जोडऩे के कार्य में 4263 करोड़ रूपयों की राशि का प्रावधान केन्द्र द्वारा किया गया. इस योजना की साकारता उपरांत 8 लाख 81 हजार हेक्टर कृषि भूमि में सिंचाई का लक्ष्य पूरा किया जा सकेगा. खेती की सिंचाई के साथ-साथ बिजली का उत्पादन 72 मेघा वाट हो सकेगा. उक्त योजना के कार्यवरण में पर्यावरण का संरक्षण ध्यान रखने हेतु प्रधानमंत्री महोदय द्वारा संबंधित समझौते के दौरान सूचनाएं प्रेषिक की गई. इसी तर्ज पर विदर्भ का विकास जरूरी होने से नदियों को जोडऩे की योजना अंतर्गत उत्तर प्रदेश तथा मध्यप्रदेश की नदियों को महादेव पर्वतीय, सतपुड़ा पर्वतीय श्रृंखलाओं के मध्य की दरियों का नैसर्गिक लाभ लिया जा सकता है.  जिससे नदियों को जोडऩे के लिये जिस प्रकार छत्तीसगढ़ तथा मध्यप्रदेश की केन तथा बेतवा नदीयां जोडऩे में जो बड़ी राशि दशाई गई उससे भी काफी कम लागत आ सकती है. इस प्रकार पर्वतीय श्रृंखलाओं में नैसर्गिक रूप से निर्मित दरीयों के बीच से यदि इन राज्यों की नदियों को लाया जाता है तो, उसका निश्चित रूप से लाभ पर्वतीय क्षेत्र के साथ साथ देश के पर्यावरण की सुरक्षा में हो सकता है. जबलपुर मध्यप्रदेश के भेड़ाघाट समीपस्थ नर्मदा नदी का बहाव और सतपुड़ा के बीचोबीच देश के पूर्व से पश्चिम की ओर है. विंध्याचल पर्वत श्रृंखला से होता हुआ सतपुड़ा पर्वतीय श्रृंखला तक यह बहाव महादेव पर्वत के मध्य से होकर नैसर्गिक ढलान के कछार से मध्यप्रदेश एवं छत्तीसगढ़  प्रांतीय सीमाओं से गुजरता हुआ नर्मदा का जल जबलपुर-शिवणी-रामटेक-कन्हान-नागपुर-काटोल-नरखेड़-वरूड-सालबर्डी, अंबाड़ा-घाटलाड़की-शिरजगांव-बहीरम-मुक्तागिरी-घटांग-अंबापार्टी-पोपटखेड़ा-बालापुर-शेगांव-खामगांव-बुलढाणा-अजिंठा इस प्रकार की सतपुड़ा पर्वतीय श्रृंखलाओं से भौगोलिक सरलताओं से नहरों के रूप में लाया जा सकता है. अॅड. धर्माधिकारी ने दी जानकारी के अनुसार इस विषय में मा. शरदचंद्रजी पंवार केन्द्रीय कृषि मंत्रालय दिल्ली को उक्त निवेदन सौंपा है. परंतु अत्यंत महत्वपूर्ण, किसानों के हितवाले, पर्यावरण की सुरक्षा वाले, पेयजल की समस्या का निराकरण करने वाले तथा बिजली उत्पादन में सक्रिय होने वाले इस प्रकार की सतपुड़ा पर्वतीय श्रृंखला का नैसर्गिक लाभवाली योजना के विषय को लेकर नेशनल एजेंडे पर  अब तक लाया नहीं गया. उनके द्वारा उक्त योजना को अंजाम देने हेतु विदर्भ की जनता के साथ तुंरत चर्चा करने की आवश्यकता व्यक्त कर दी गई. साथ ही यह भी चिंता व्यक्त की गई कि राजकीय पक्षों द्वारा विदर्भ के विकासवाली तथा नैसर्गिक पर्वतीय रचना का उपयोग लेकर किसानों का हितवाली, पर्यावरण रक्षक योजना का मसुदा, अब तक सरकार की स्वीकृति के लिये रखा नही गया. सतपुड़ा पर्वतीय श्रृंखलाओं का उपयोग कर मध्यप्रदेश की नर्मदा नदी के एक प्रवाह का पानी नहरों के माध्यम से विदर्भ प्रदेश की हरितक्रांति के लिये उपयोगी हो सकती है. जिससे जागतिक पर्यावरण का समतोल रखने में, पर्वतीय क्षेत्रों में वनऔषिधयों की वनखेती का विकास, आदिवासी नागरिकों को आरोग्य प्रदान करने में महत्वपूर्ण तथा उनके आर्थिक विकास में सहयोगी, वनखेती की गुणवत्ता जागतिक स्तर पर बरकरार रखने में सार्थ तथा आयात-निर्यात में सक्रियता प्रदान करने वाली के साथ घनदार, पर्वतीय क्षेत्रों में पानी के प्रवाह के साथ अन्य की भरपूर व्यवस्था प्रदान कर वन्यप्राणियों की नैसर्गिक रूप में उत्पत्ति हो सकेगी. जिससे उपरोक्त सभी क्षेत्रों का विकास होकर राष्टï्रीय संपत्ति में इजाफा होगा. विदर्भ के किसानों के साथ सभी नागरिकों द्वारा फिर से हरितक्रांति का निश्चित रूप से अनुभव किया जा सकेगा

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