Monday, December 13, 2010

Pani Ke Sankat Se Bhachana Hai





नर्मदा - पूर्णा - ताप्ती को सतपुड़ा, महादेव तथा मेकेल पहाड़ों से जोड़ कर अकाल से बचाया जा सकता है
बैतूल   नैसर्गिक धरोहर पर्वतीय क्षेत्र का उपयोग कर नदियों तथा नहरों का जल अन्य प्रांतों तक सफलता से पहुंचाने में कारगर सिद्घ हो सकते हैं. इस प्रकार पर्वतीय कछारों का उपयोग नदियों के जोडऩे हेतु तथा पर्यावरण की रक्षा के साथ वनखेती उत्पाद, पेयजल की भीषण समस्या के अलावा आदिवासी पर्वतीय क्षेत्रों में फलोत्पादन को बढ़ावा दिया जा सकता है. वहीं पर वन औषधियों की खेती मुमकीन हो सकती है. जिससे राष्टï्रीय संपत्ति का तेजी से इजाफा किया जा सकता है. जैसे महत्वपूर्ण योजनाओं को पर्वतीय कछारों का उपयोग कर, नर्मदा, पैनगंगा, कन्हान, वर्धा, पूर्णा, ताप्ती जैसी बड़ी-बड़ी नदियों का जल अथवा जल की धारा पर्वतीय कंधारों के बीच से लायी जा सकती है, जैसे विचार शहर के विधीतज्ञ अॅड. धनंजय धर्माधिकारी द्वारा देशहित में व्यक्त किए गए. धर्माधिकारी के अनुसार भारत वर्ष कृषि प्रधान देश है. विदर्भ प्रदेश का संपूर्ण इलाका पर्वतीय क्षेत्र से घिरा हुआ तथा इस प्रदेश के किसानों का मुख्य व्यवसाय खेती है. विदर्भ के खेती व्यवसाय पर अन्य सभी आर्थिक व्यवहार निर्भर करते है. परंतु दुर्भाग्य की बात है कि विगत चार-पांच वर्षो से नैसर्गिक बदलाव के कारण बारिश ने अपना मुंह इस प्रदेश से मोड़ लिया है. परिणामत: किसानों को पर्याप्त बारिश के अभाव से पुस्तैनी व्यवसाय खेती करना काफी कठिन हो चुका है. खेती का व्यवसाय कुंठित होने के कारण किसानों द्वारा बैंक से लिये गये कर्ज की राशि का भुगतान समय पर होने से तथा ब्याज की राशि भरमसा बढऩे से उनके द्वारा मजबूर होकर आत्महत्याएं की जा रही है. खेती व्यवसाय में जुड़े हुए मजदूरों को मजदूरी न मिलने के कारण इन परिवारों द्वारा रोजी-रोटी की व्यवस्था में अन्यत्र क्षेत्रों में खोज की जाती है. जिसके कारण देहातों से नागरिकों ने अपना मुंह मोड़ लेने के कारण ग्रामों में उदासीनता देखी जा रही है. यही अवस्था भविष्य में बनी रही तो विदर्भ प्रदेश में शीघ्र ही अकालतुल्य स्थिति का अनुभव किया जा सकेगा। ठीक इन्हीं परिस्थितियों से बचने के लिये वर्तमान में शासन के पास कोई भी व्यवस्था नहीं है. परंतु शहर के जागृत तथा प्रतिष्ठिïत नागरिक धर्माधिकारी ने पर्वतीय श्रृंखला का नैसर्गिक रूप में उपयोग कर मध्यप्रदेश की नदियां अथवा उनके मुख्य प्रवाहवाली जलधारा को विदर्भ में लाने से भविष्य में उपस्थित होने वाले अकाल से बचने की पर्यायी व्यवस्था ढूंढ निकाली है. भौगोलिक दृष्टिï से देखा जाए तो विदर्भ प्रदेश यह मध्यप्रदेश तथा छत्तीसगढ़ की तटवर्ती सीमाओं से जुड़ा हुआ प्रदेश है. इसका लगभग बहुत बड़ा हिस्सा सतपुड़ा पर्वत श्रेणी तथा अजंठा पर्वतीय महादेव पर्वत, मेकेल पर्वत, श्रृंखलाओ से सटे हुए है. इन पर्वतीय श्रृंखलाओं से कई नदियां निरंतर कल-कल करती हुई बहती थी. इन नदियों में जल का अभाव होने से इन नदियों में जल का अभाव होने से इन नदियों को सुखी नदियों का स्वरूप प्राप्त हो रहा है. हालांकि इस पर्वतीय श्रृंखला में संबंधित प्रशासन द्वारा अनेक बांधों का निर्माण कार्य किया गया. लेकिन जल के अभाव में शासन का लक्ष्य पूरा नहीं हो पाया. इसलिए जल की आवश्यकता तथा पर्यावरण की रक्षा को लेकर अॅड. धर्माधिकारी द्वारा अचलपुर तथा विदर्भ के निवासियों की ओर से यह मांग प्रस्तुत की है कि वर्तमान में देश की नदियों को जोडऩे की महत्वकांक्षी योजना के तहत जिस प्रकार केन तथा बेतवां नदियों को प्राथमिक रूप से जोडऩे हेतु योजना का हाल ही में उत्तर प्रदेश तथा मध्यप्रदेश के बीच प्रधानमंत्री मनमोहनसिंग की उपस्थिति में राज्यों के मुख्यमंत्री मुलायमसिंग यादव तथा बाबूलाल गौर  ने केन्द्रीय जल संसाधन मंत्री प्रिय रंजन मुंशी के साथ त्रिपक्षीय समझौते के मसूदे को अंतिम रूप दिया है तथा योजनाओं को अमल में लाने हेतु हस्ताक्षर किए. जिससे नदियों को जोडऩे के कार्य को राष्टï्रीय अजेंडे पर लाने वाले पूर्व प्रधानमंत्री अटलबिहारी वाजपेई ने इस प्रकार के दो प्रदेशों से बहती नदियों को जोड़ऩे के कार्य की प्रशंसा की है. उत्तर प्रदेश तथा मध्यप्रदेश की नदियों में जिनमें  केन तथा बेतवा का समावेश है.
    इन नदियों के जोडऩे के कार्य में 4263 करोड़ रूपयों की राशि का प्रावधान केन्द्र द्वारा किया गया. इस योजना की साकारता उपरांत 8 लाख 81 हजार हेक्टर कृषि भूमि में सिंचाई का लक्ष्य पूरा किया जा सकेगा. खेती की सिंचाई के साथ-साथ बिजली का उत्पादन 72 मेघा वाट हो सकेगा. उक्त योजना के कार्यवरण में पर्यावरण का संरक्षण ध्यान रखने हेतु प्रधानमंत्री महोदय द्वारा संबंधित समझौते के दौरान सूचनाएं प्रेषिक की गई. इसी तर्ज पर विदर्भ का विकास जरूरी होने से नदियों को जोडऩे की योजना अंतर्गत उत्तर प्रदेश तथा मध्यप्रदेश की नदियों को महादेव पर्वतीय, सतपुड़ा पर्वतीय श्रृंखलाओं के मध्य की दरियों का नैसर्गिक लाभ लिया जा सकता है.  जिससे नदियों को जोडऩे के लिये जिस प्रकार छत्तीसगढ़ तथा मध्यप्रदेश की केन तथा बेतवा नदीयां जोडऩे में जो बड़ी राशि दशाई गई उससे भी काफी कम लागत आ सकती है. इस प्रकार पर्वतीय श्रृंखलाओं में नैसर्गिक रूप से निर्मित दरीयों के बीच से यदि इन राज्यों की नदियों को लाया जाता है तो, उसका निश्चित रूप से लाभ पर्वतीय क्षेत्र के साथ साथ देश के पर्यावरण की सुरक्षा में हो सकता है. जबलपुर मध्यप्रदेश के भेड़ाघाट समीपस्थ नर्मदा नदी का बहाव और सतपुड़ा के बीचोबीच देश के पूर्व से पश्चिम की ओर है. विंध्याचल पर्वत श्रृंखला से होता हुआ सतपुड़ा पर्वतीय श्रृंखला तक यह बहाव महादेव पर्वत के मध्य से होकर नैसर्गिक ढलान के कछार से मध्यप्रदेश एवं छत्तीसगढ़  प्रांतीय सीमाओं से गुजरता हुआ नर्मदा का जल जबलपुर-शिवणी-रामटेक-कन्हान-नागपुर-काटोल-नरखेड़-वरूड-सालबर्डी, अंबाड़ा-घाटलाड़की-शिरजगांव-बहीरम-मुक्तागिरी-घटांग-अंबापार्टी-पोपटखेड़ा-बालापुर-शेगांव-खामगांव-बुलढाणा-अजिंठा इस प्रकार की सतपुड़ा पर्वतीय श्रृंखलाओं से भौगोलिक सरलताओं से नहरों के रूप में लाया जा सकता है. अॅड. धर्माधिकारी ने दी जानकारी के अनुसार इस विषय में मा. शरदचंद्रजी पंवार केन्द्रीय कृषि मंत्रालय दिल्ली को उक्त निवेदन सौंपा है. परंतु अत्यंत महत्वपूर्ण, किसानों के हितवाले, पर्यावरण की सुरक्षा वाले, पेयजल की समस्या का निराकरण करने वाले तथा बिजली उत्पादन में सक्रिय होने वाले इस प्रकार की सतपुड़ा पर्वतीय श्रृंखला का नैसर्गिक लाभवाली योजना के विषय को लेकर नेशनल एजेंडे पर  अब तक लाया नहीं गया. उनके द्वारा उक्त योजना को अंजाम देने हेतु विदर्भ की जनता के साथ तुंरत चर्चा करने की आवश्यकता व्यक्त कर दी गई. साथ ही यह भी चिंता व्यक्त की गई कि राजकीय पक्षों द्वारा विदर्भ के विकासवाली तथा नैसर्गिक पर्वतीय रचना का उपयोग लेकर किसानों का हितवाली, पर्यावरण रक्षक योजना का मसुदा, अब तक सरकार की स्वीकृति के लिये रखा नही गया. सतपुड़ा पर्वतीय श्रृंखलाओं का उपयोग कर मध्यप्रदेश की नर्मदा नदी के एक प्रवाह का पानी नहरों के माध्यम से विदर्भ प्रदेश की हरितक्रांति के लिये उपयोगी हो सकती है. जिससे जागतिक पर्यावरण का समतोल रखने में, पर्वतीय क्षेत्रों में वनऔषिधयों की वनखेती का विकास, आदिवासी नागरिकों को आरोग्य प्रदान करने में महत्वपूर्ण तथा उनके आर्थिक विकास में सहयोगी, वनखेती की गुणवत्ता जागतिक स्तर पर बरकरार रखने में सार्थ तथा आयात-निर्यात में सक्रियता प्रदान करने वाली के साथ घनदार, पर्वतीय क्षेत्रों में पानी के प्रवाह के साथ अन्य की भरपूर व्यवस्था प्रदान कर वन्यप्राणियों की नैसर्गिक रूप में उत्पत्ति हो सकेगी. जिससे उपरोक्त सभी क्षेत्रों का विकास होकर राष्टï्रीय संपत्ति में इजाफा होगा. विदर्भ के किसानों के साथ सभी नागरिकों द्वारा फिर से हरितक्रांति का निश्चित रूप से अनुभव किया जा सकेगा

Maa Tapati Mahima

श्राद्ध पर्व पितृ पक्ष विशेष जहाँ पर भगवान मर्यादा पुरूषोत्तम श्री राम के हाथो किये गये
तर्पण से उनके पितरो एवं राजा दशरथ को मिली थी मुक्ति
सचित्र आलेख एवं प्रस्तुति :- रोहित -  रामकिशोर पंवार
श्राद्ध पक्ष या पितृ पक्ष के बारे में रामायण में एक कथा पढऩे को मिलती है कि राजा दशरथ के शब्द भेदी से श्रवण कुमार की जल भरते समय अकाल मृत्यु हो गई थी. पुत्र की मौत से दुखी श्रवण कुमार के माता - पिता ने राजा दशरथ को श्राप दिया था कि उसकी भी मृत्यु पुत्र मोह में होगी. राम के वनवास के बाद राजा दशरथ भी पुत्र मोह में मृत्यु को प्राप्त कर गये लेकिन उन्हे जो हत्या का श्राप मिला था जिसके चलते उन्हे स्वर्ग की प्राप्ति नहीं हो सकी. एक अन्य कथा यह भी है कि ज्येष्ठ पुत्र के जीवित रहते अन्य पुत्र द्वारा किया अंतिम संस्कार एवं क्रियाक्रम भी शास्त्रो के अनुसार मान्य नहीं है. ऐसे में राजा दशरथ को मुक्ति नहीं प्राप्त हो सकी थी. राजा दशरथ द्वारा ताप्ती महात्म की बताई कथा का भगवान मर्यादा पुरूषोत्तम को ज्ञान था. इसलिए उन्होने सूर्यपुत्री देव कन्या मां आदिगंगा ताप्ती के तट पर अपने अनुज लक्ष्मण एवं माता सीता की उपस्थिति में अपने पितरो एवं अपने पिता का तर्पण कार्य ताप्ती नदी में किया था. भगवान श्री राम ने बारहलिंग नामक स्थान पर रूक कर यहां पर भगवान विश्वकर्मा की मदद से बारह लिंगो की आकृति ताप्ती के तट पर स्थित चटटनो पर ऊकेर कर उनकी प्राण प्रतिष्ठा की थी. बारहलिंग में आज भी ताप्ती स्नानगार जैसे कई ऐसे स्थान है जो कि भगवान श्री राम एवं माता सीता के यहां पर मौजूदगी के प्रमाण देते है. एक अन्य कथा के अनुसार दुर्वशा ऋषि ने देवलघाट नामक स्थान पर बीच ताप्ती नदी में स्थित एक चटटन के नीचे से बने सुरंग द्वार से स्वर्ग को प्रस्थान किया था. शास्त्रो में कहा गया है कि यदि भूलवश या अनजाने से किसी भी मृत देह की हडड्ी ताप्ती के जल में प्रवाहित हो जाती है तो उस मृत आत्मा को मुक्ति मिल जाती है. जिस प्रकार महाकाल के दर्शन करने से अकाल मौत नहीं होती ठीक उसी प्रकार किसी भी अकाल मौत के शिकार बनी देह की अस्थियां ताप्ती जल में प्रवाहित करने या उसका अनुसरण करके उसे ताप्ती जल में प्रवाहित किये जाने से अकाल मौत का शिकार बनी आत्मा को भी प्रेत योनी से मुक्ति मिल जाती है. ताप्ती नदी के बहते जल में बिना किसी विधि - विधान के यदि कोई भी व्यक्ति अतृप्त आत्मा को आमंत्रित करके उसे अपने दोनो हाथो में जल लेकर उसकी शांती एवं तृप्ति का संकल्प लेकर यदि उसे बहते जल में प्रवाहित कर देता है तो मृत व्यक्ति की आत्मा को मुक्ति मिल जाती है. सबसे चमत्कारिक तथ्य यह है कि ताप्ती के पावन जल में बारह माह किसी भी मृत व्यक्ति का तर्पण कार्य संपादित किया जा सकता है. इस तर्पण कार्य को ताप्ती जन्मस्थली मुलताई में गायत्री परिवार द्वारा नि:शुल्क संपादित किया जाता है . ताप्ती नदी के जल में मुलताई से लेकर सूरत गुजरात तक कोई भी व्यक्ति किसी भी धर्म - जाति - सम्प्रदाय - वर्ग का अपने किसी भी परिजन या परिचित व्यक्ति की मृत आत्मा का तर्पण कार्य संपादित कर सकता है.
                सूर्यपुत्री मां ताप्ती भारत की पश्चिम दिशा में बहने वाली प्रमुख दो नदियो में से एक है. यह नाम ताप अर्थात उष्ण गर्मी से उत्पन्न हुआ है. वैसे भी ताप्ती ताप - पाप - श्राप और त्रास को हरने वाली आदीगंगा कही जाती है. स्वंय भगवान सूर्यनारायण ने स्वंय के ताप को कम करने के लिए ताप्ती को धरती पर भेजा था. यह सतपुड़ा पठार पर स्थित मुलताई के तालाब से उत्पन्न हुई है लेकिन इसका मुख्य जलस्त्रोत मुलताई के उत्तर में 21 अंक्षाश 48 अक्षंाश पूर्व में 78 अंक्षाश एवं 48 अंक्षाश में स्थित 790 मीटर ऊँची पहाड़ी है जिसे प्राचिनकाल में ऋषिगिरी पर्वत कहा जाता था जो बाद में नारद टेकड़ी कहा जाने लगा . इस स्थान पर स्वंय ऋषि नारद ने घोर तपस्या की थी तभी तो उन्हे ताप्ती पुराण चोरी करने के बाद उत्पन्न कोढ़ से मुक्ति का मार्ग ताप्ती नदी नदी में स्नान का महत्व बताया गया था. मुलताई का नारद कुण्ड वही स्थान है जहाँ पर नारद को स्नान के बाद कोढ़ से मुक्ति मिली थी. ताप्ती नदी सतपुड़ा की पहाडिय़ो एवं चिखलदरा की घाटियो को चीरती हुई महाखडड में बहती है. 201 किलोमीटर अपने मुख्य जलस्त्रोत से बहने के बाद ताप्ती पूर्वी निमाड़ में पहँुचती है. पूर्वी निमाड़ में भी 48 किलोमीटर सकरी घाटियो का सीना चीरती ताप्ती 242 किलोमीटर का सकरा रास्ता खानदेश का तय करने के बाद 129 किलोमीटर पहाड़ी जंगली रास्तो से कच्छ क्षेत्र में प्रवेश करती है. लगभग 701 किलोमीटर लम्बी ताप्ती नदी में सैकड़ो  कुण्ड एवं जल प्रताप के साथ डोह है जिसकी लम्बी खाट में बुनी जाने वाली रस्सी को डालने के बाद भी नापी नही जा सकी है. इस नदी पर यूँ तो आज तक कोई भी बांध स्थाई रूप से टिक नही सका है मुलताई के पास बना चन्दोरा बांध इस बात का पर्याप्त आधार है कि कम जलधारा के बाद भी वह उसे दो बार तहस नहस कर चुकी है. सूरत को बदसूरत करने वाली ताप्ती वैसे तो मात्र स्मरण मात्र से ही अपने भक्त पर मेहरबान हो जाती है लेकिन  किसी ने उसके अस्तित्व को नकारने की कुचेष्टïा की तो वह फिर शनिदेव की बहन है कब किसकी साढ़े साती कर दे कहा नही जा सकता. ताप्ती नदी के किनारे अनेक सभ्यताओं ने जन्म लिया और वे विलुप्त हो गई .भले ही आज ताप्ती घाटी की सभ्यता के पर्याप्त सबूत न मिल पाये हो लेकिन ताप्ती के तपबल को आज भी कोई नकारने की हिम्मत नही कर सका है. पुराणो में लिखा है कि भगवान जटाशंकर भोलेनाथ की जटा से निकली भागीरथी गंगा मैया में सौ बार स्नान का , देवाधिदेव महादेव के नेत्रो से निकली एक बुन्द से जन्मी शिव पुत्री कही जाने वाली माँ नर्मदा के दर्शन का तथा माँ ताप्ती के नाम का एक समान पूण्य एवं लाभ है . वैसे तो जबसे से इस सृष्टिï का निमार्ण हुआ है तबसे मूर्ति पूजक हिन्दू समाज नदियों को देवियों के रूप में सदियों से पूजता चला आ रहा है . हमारे धार्मिक गंथो एवं वेद तथा पुराणो में भारत की पवित्र नदियों में ताप्ती एवं पूर्णा का भी उल्लेख मिलता है . सूर्य पुत्री ताप्ती अखंड भारत के केन्द्र बिन्दु कहे जाने वाले मध्यप्रदेश के बैतूल जिले के प्राचीन मुलतापी जो कि वर्तमान में मुलताई कहा जाता है . इस मुलताई नगर स्थित तालाब से निकल कर समीप के गौ मुख से एक सुक्ष्म धार के रूप में बहती हुई गुजरात राज्य के सूरत के पास अरब सागर में समाहित हो जाती है .  सूर्य देव की लाड़ली बेटी एवं शनिदेव की प्यारी बहना ताप्ती जो कि आदिगंगा के नाम से भी प्रख्यात है वह आदिकाल से लेकर अनंत काल तक मध्यप्रदेश ही नहीं बल्कि महाराष्टï्र एवं गुजरात के विभिन्न जिलों की पूज्य नदियों की तरह पूजी जाती रहेगी . जिसका एक कारण यह भी है कि सूर्यपुत्री ताप्ती मुक्ति का सबसे अच्छा माध्यम है . सबसे आश्चर्य जनक तथ्य यह है कि सूर्य पुत्री ताप्ती की सखी सहेली कोई और न होकर चन्द्रदेव की पुत्री पूर्णा है जो की उसकी सहायक नदी के रूप में जानी - पहचानी जाती है . पूर्णा नदी भैंसदेही नगर के पश्चिम दिशा में स्थित काशी तालाब से निकलती हैं. प्रतिवर्ष लाखों की संख्या में श्रद्घालु लोग अमावस्या और पूर्णिमा के समय इन नदियों में नहा कर पूर्ण लाभ कमाते हैं . एक किवदंती  कथाओं के अनुसार सूर्य और चन्द्र दोनों ही आपस में एक दूसरे के विरोधी रहे हैं , तथा दोनों एक दूसरे को फूटी आँख नहीं सुहाते हैं. ऐसे में दोनों की पुत्रियों का अनोखा मिलन बैतूल जिले में आज भी लोगों की श्रद्घा का केन्द्र बना हुआ हैं .
                        धरती पर ताप्ती के अवतरण की कथा
            पौराणिक कथाओं में उल्लेखित वर्णन के अनुसार एक समय वह था जब कपिल मुनि से शापित जलकर नष्टï हो पाषाण बने अपने पूर्वजों का उद्धार करने इस पृथ्वी लोक पर, गंगा जी को लाने भागीरथ ने हजारों वर्ष घोर तपस्या की थी. उसके फलस्वरूप गंगा ने ब्रम्ह कमण्डल (ब्रम्हलोक से) धरती पर, भागीरथ के पूर्वजों का उद्धार करने आने का प्रयत्न तो किया परंतु वसुन्धरा पर उस सदी में मात्र ताप्ती नदी की ही सर्वत्र महिमा फैली हुई थी. ताप्ती नदी का महत्व समझकर श्री गंगा पृथ्वी लोक पर आने में संकुचित होने लगी, तदोउपरांत प्रजापिता ब्रम्हा विष्णु तथा कैलाश पति शंकर भगवान की सूझ से देवर्षिक नारद ने ताप्ती महिमा के सारे ग्रंथ लुप्त करवा दिये, तब ही गंगा धारा पर सूक्ष्म धारा में हिमालय से प्रगट हुई, ठीक उस समय से सूर्य पुत्री कहलाने वाली ताप्ती नदी का महत्व कुछ कम हो गया, कुछ ऐसी ही गाथाये मुनि ऋषियों से अक्सर सुनी जाती रही है, आज भी ताप्ती जल में एक विशेष प्रकार का वैज्ञानिक असर पड़ा है, जिसे प्रत्यक्ष रूप से स्वयं भी आजमाईश कर सकते है. ताप्ती जल में मनुष्य की अस्थियां एक सप्ताह के भीतर घुल जाती है. इस नदी में प्रतिदिन ब्रम्हामुहुर्त में स्नान करने में समस्त रोग एवं पापो का नाश होता है. तभी तो राजा रघु ने इस जल के प्रताप से कोढ़ जैसे चर्म रोग से मुक्ति पाई थी.
                            ताप्ती का पूर्णा से मिलन
पश्चिम दिशा की ओर तेज प्रभाव से बहने वाली ताप्ती नदी मध्यप्रदेश महाराष्टï्र व गुजरात में करीब 470 मील (सात सौ बावन किलोमीटर) बहती हुई अरब सागर में मिलती हैं. ताप्ती नदी बैतूल जिले में सतपुड़ा की पहाडिय़ों के बीच से निकलती हुई महाराष्टï्र के खान देश में 96 मील समतल तथा उपजाऊ भूमि के क्षेत्र से गुजरती हैं . खान देश में ताप्ती की चौड़ाई 250 से 400 गज तथा ऊंचाई 60 फीट है. इसी तरह गुजरात में 90 मील के बहाव में यह नदी अरब सागर में मिलती हैं . ताप्ती की सहायक नदी कहलाने वाली पूर्णा नदी भैंसदेही के काशी तालाब से निकलती हुई आगे चलकर महाराष्टï्र के भुसावल नगर के पास ताप्ती में मिल जाती हैं.
    पुराणों में ताप्ती जी की जन्मकथा
इतिहास के पन्नों पर छपी कहानियों को पढऩे से पता चलता है कि बैतूल जिले की मुलताई तहसील मुख्यालय के पास स्थित ताप्ती तालाब से निकलने वाली सूर्य पुत्री ताप्ती की जन्मकथा महाभारत में आदि पर्व पर उल्लेखित है. पुराणों में सूर्य भगवान की पुत्री तापी जो ताप्ती कहलाई सूर्य भगवान के द्वारा उत्पन्न की गई. ऐसा कहा जाता है कि भगवान सूर्य ने स्वयं की गर्मी या ताप से अपनी रक्षा करने के लिए ताप्ती को धरती पर अवतरित किया था. भविष्य पुराणों में ताप्ती महिमा के बारे में लिखा है कि सूर्य ने विश्वकर्मा की पुत्री संजना से विवाह किया था. संजना से उनकी दो संताने हुई- कालिन्दनी और यम. उस समय सूर्य अपने वर्तमान रूप में नहीं वरन अण्डाकार रूप में थे. संजना को सूर्य का ताप सहन नहीं हुआ . अत: अपने पति की परिचर्चा अपनी दासी छाया को सौंपकर वह एक घोड़ी का रूप धारण कर मंदिर में तपस्या करने चली गई . छाया ने संजना का रूप धारण कर काफी समय तक सूर्य की सेवा की . सूर्य से छाया को शनिचर और ताप्ती नामक दो संतान हुई . इसके अलावा सूर्य की एक और पुत्री सावित्री भी थी . सूर्य ने अपनी पुत्री को यह आशीर्वाद दिया था कि वह विनय पर्वत से पश्चिम दिशा की ओर बहेगी.
यम चतुर्थी के दिन ताप्ती भाई-बहन के स्नान का महत्व
पुराणों में ताप्ती के विवाह की जानकारी पढऩे को मिलती है. वायु पुराण में लिखा है कि कृत युग में चन्द्रवंश में ऋष्य नामक एक प्रताप राजा राज्य करते थे . उनके एक सवरण को गुरू वशिष्ठï ने वेदों की शिक्षा दी. एक समय की बात है सवरण राजपाट का दायित्व गुरू वशिष्ठï के हाथों सौंपकर जंगल में तपस्या करने के लिए निकल गये . वैभराज जंगल में सवरण ने एक सरोवर में कुछ अप्सराओं को स्नाने करते हुए देखा जिनमें से एक ताप्ती भी थी. ताप्ती को देखकर सवरण मोहित हो गया और सवरण ने आगे चलकर ताप्ती से विवाह कर लिया . सूर्य पुत्री ताप्ती को उसके भाई शनिचर (शनिदेव) ने यह आशीर्वाद दिया कि जो भी भाई-बहन यम चतुर्थी के दिन ताप्ती और यमुना जी में स्नान करेगा उन्हें कभी भी अकाल मौत नहीं होगी. प्रतिवर्ष कार्तिक माह में सूर्य पुत्री ताप्ती के किनारे बसे धार्मिक स्थलों पर मेला लगता है जिसमें लाखों की संख्या में श्रद्घालु नर नारी कार्तिक अमावस्या पर स्नान करने के लिये आते हैं .       

                        भगवान श्री राम द्घारा निर्मित बारह शिवलिंग
ऐसी पुरानी मान्यता है कि भगवान श्री राम, लखन, सीता समेत वन गमन के उपरांत इस स्थान पर ठहरे हुए थे. ठीक उसी समय स्वयं श्री राम के हाथों द्घारा निर्मित यह बारह शिवलिंग तथा सीता स्नानागार शुशुप्त रूप से आज भी विद्यमान है, जो पाषाण शिला पर अंकित पुराना इतिहास के गवाह है. ग्राम खेड़ी सांवलीगढ़ से ग्यारह किलोमीटर दूर त्रिवेणी भारती बाबा की तपोभूमि ताप्ती घाट जो इस क्षेत्र में तो क्या संपूर्ण बैतूल जिले में बहुधा जानी पहचानी जगह है.  बारहलिंग नामक स्थान पर जो ताप्ती नदी के तट पर स्थित है, यहां कि प्राकृतिक छठा सुन्दर मनमोहक दृश्य आने-जाने वाले यात्रियों का मन मोह लेते है. घने हरियाले जंगलो से आच्छादित प्रकृति की अनुपम छटा बिखरेती हुई ताप्ती नदी शांत स्वरों में पूर्व से पश्चिम दिशा की ओर बहती है. यहां पर नदी के दूसरे तट पर ताप्ती माई का एक विशाल मंदिर दत्तात्रेय, रामलखन सीता तथा गैबीदास महाराज की समाधी स्थल मुख्य आकर्षण का केंद्र है. प्रतिवर्ष यहां कार्तिक पूर्णिमा को तीन दित तक चलने वाला मेला लगता है. यहां समूचे क्षेत्र की जनता अटूट श्रद्धा भक्ति के साथ मेले में तीन दिवस के विधिविधान के साथ भगवान सूर्य को अर्ध देकर स्नान कर पूजा अर्चना करते है और फिर मेले में खरीद फरोख्त करते है. रात्रि में आदिवासियों द्वारा डंडार, नौटंकी आदि कई प्रकार के आयोजन किए जाते है. किंतु विड़म्बना है कि प्रशासन की नाक के नीचे ऐसे प्राकृतिक स्थल कि ओर उनका जरा भी ध्यान नहीं है और आज यह स्थल दुव्र्यवस्थाओं का शिकार हो रहा है .
                            नदियों के आसपास सर्वाधिक शिवलिंग
बैतूल जिलेे मे सूर्य पुत्री और चन्द्रपुत्री में आज भी दर्जनों की संख्या में मिलने वाले पुराने मंदिरों के अवशेषों में शिवलिंगों की संख्या अधिक है. कहा तो यहां तक जाता है कि ताप्ती नदी के किनारे बसे 12 लिंग स्थान पर नदी में आज भी प्रकृति द्वारा बनाये गये 12 लिंग लोगों की श्रद्घा का केन्द्र बने हुये हैं. बैतूल जिले की ये दोनों नदियां अपने अंचल में अनेकों शिवलिंगों को समाये हुये हैं. लाखों की संख्या में पहुंचाने वाले शिव भक्तों की श्रद्घा का केन्द्र बनी हुई सूर्य पुत्री ताप्ती और चन्द्रपुत्री पूर्णा बैतूल जैसे पिछड़े जिले का इतिहास के अनेक अनसुलझे रहस्यों को छुपाये हुयी है.
                    सदियो से बनता चला आ रहा है पत्थरो से बना रामसेतू
भगवान मर्यादा पुरूषोत्तम श्री राम द्घारा बनाये गये रामसेतू को लेकर भले ही विवाद छीड़ा हो लेकिन मध्यप्रदेश के बैतूल जिले में तो सदियो से भगवान श्री राम द्घारा स्थापित बारह शिवलिंगो की पूजा करने के लिए आसपास की जनजाति के लोग ताप्ती नदी के इस छोर से उस छोर पर जाने के लिए पत्थरो का पूल ठीक उसी तरह बनाते चले आ रहे है जैसा कि रामसेतू बना था. पूर्व से पश्चिम की ओर तेज प्रवाह से बहने वाली सूर्यपुत्री आदि गंगा कही जाने वाली ताप्ती नदी के एक छोर से दुसरे छोर कार्तिक माह की पूर्णिमा को लगने वाले बारहलिंग के मेले के लिए आने वाली हजारो श्रद्घालु जनता को आने - जाने के लिए इसी पत्थरो से बने अस्थायी पूल से आना - जाना करना पड़ता हैै.अपने पिता राजा दशरथ एवं माता कैकेई के आदेश का पालन करते हुये अपनी पत्नि सीता और अनुज लक्ष्मण के साथ 14 वर्ष का वनवास काटते हुये चित्रकुट से दण्डकारण क्षेत्र में प्रवेश करते समय भगवान मर्यादा पुरूषोत्तम श्री राम जिस पथ से रावण की लंका की ओर चले गये थे उस पथ में शामिल बैतूल जिले का पौराणिक इतिहास कई अनसुलझे रहस्यो को अपने आँचल में छुपाये हुये है . ऐसी पौराणिक कथाओ से जुड़ी एक कथा अनुसार राम से जुड़ी दंत एवं प्रचलित तथा पौराणिक कथाओं के अनुसार कार्तिक माह की पूर्णिमा के दिन भगवान श्रीराम ने ताप्ती नदी के  किनारे बारह शिव लिंगो की स्थापना कर उनका पूजन किया था तथा इसी स्थान पर रात्री विश्राम करने की व$जह से आसपास की जनजाति के लोगा यहाँ पर तीन दिन की तीरथ यात्रा क लिए आकर रात्री मुकाम करते हैै. कथाओ एवं पुराणो के अनुसार श्री राम ने वनो में उगने वाले फलो में से एक को जब माता सीता को दिया तो उन्होने इसका नाम जानना चाहा तब भगवान श्री राम ने कहा कि हे सीते अगर तुम्हे यह फल यदि अति प्रिय है तो आज से यह सीताफल कहलायेगा. आज बैतूल जिले के जंगलो एवं आसपास की आबादी वाले क्षेत्रो में सर्वाधिक संख्या में सीताफल पाया जाता है.  बारहलिंग नामक स्थान पर आज भी सीता स्नानागार एवं विलुप्त अवस्था में भगवान श्री राम द्घारा पत्थरो पर ऊकेरे गये बारह शिवलिंग स्प्ष्टï दिखाई पड़ते हैै.
                    सूरजमुखी - सूर्यमुखी ताप्ती
        यँू तो भारत की पवित्र नदियो में उल्लेखीत माँ नर्मदा एवं माँ ताप्ती ही पश्चिम मुखी नदियाँ है . ताप्ती और नर्मदा ही एक स्थान पर पूर्व की ओर बही है . गंगा सागर को पवित्र स्थान इसलिए कहा जाता है कि उस स्थान पर गंगा जी पूर्व की ओर बहती है. ताप्ती जिस स्थान पर पूर्व की ओर बही है उस स्थान को सूर्यमुखी , सूरज मुखी , गंगा सागर  जैसे कई नामो से पुकारा जाता है . अग्रितोड़ा नामक गांव के पास सूर्यपुत्री ताप्ती ने पश्चिम से पूर्व की ओर अपनी जलधारा को बदल दिया है इसलिए प्रतिवर्ष मकर संक्राति के दिन हजारो की संख्या में दूर - दराज और अन्य जिलो एवं प्रदेशो से श्रद्घालु भक्त माँ ताप्ती के जल में स्नान कर उस जल से उसके पिता सूर्यनारायण एवं भाई शनिदेव को जल अपर्ण कर उनकी पूजा अराधना करते है. मकर संक्राति के अवसर पर ताप्ती में स्नान और ध्यान को ज्योतिषी शास्त्र एवं पंडित तथा जानकार लोग सबसे शुभ अवसर मानते है क्योकि इस दिन आपस में एक दुसरे के घोर विरोधी पिता एवं पुत्र दोनो मां ताप्ती के जल में स्नान और ध्यान से प्रसन्नचित होकर इच्छानुसार मनोकामना पूर्ण करते है. इस स्थान पर रामकुण्ड है जिसके बारे में कहा जाता है कि इस कुण्ड में भगवान श्री राम ने स्नान ध्यान किया था.
                जब मेघनाथ ने ताप्ती और नर्मदा की धारा उल्टी बहा दी
            यूं तो यह आम धारणा है कि बैतूल जिला सदियों पहले रावण के अधीन राज्य का एक अंग था. इस क्षेत्र में रहने वाले आदिवासी इसी कारण सदियों से होलिका दहन के दूसरे दिन रावण के बलशाली पुत्र मेघनाथ की पूजा करते चले आ रहे है. जिले के हर गांव में जहां पर आदिवासी परिवार रहता है उस गांव में एक स्थान पर जैरी का खंबा गाड़ा होता है और इसी जैरी के खंबे पर चढ़कर पूजा अर्चना की जाती है. रावण संहिता में उल्लेखित कहानी के अनुसार नर्मदा और ताप्ती नदी के किनारे जब रावण और उसके पुत्र मेघनाथ ने अपने तप बल के बल पर नर्मदा और ताप्ती की धाराओं को उल्टी बहा दिया तो उसे देखकर आदिवासी लोग डर गए . उस समय से लेकर आज तक उक्त सभी डरे सहमे आदिवासियों के वंशज पीढ़ी दर पीढ़ी से रावण और उसके बलशाली पुत्र मेघनाथ को ही अपना राजा मानकर उसकी पूजा अर्चना करते चले आ रहे है. रावण संहिता में मेघनाथ को लेकर कई किवदंत कहानियां लिखी हुई है जिसके अनुसार भवगान शिव को प्रसन्न करने के लिए उनकी पुत्री कही जाने वाली माँ नर्मदा एवं सूर्य पुत्री माँ ताप्ती नदी के किनारे रावण और उसके पुत्र मेघनाथ ने काफी समय तक जटिल एवं कठिन तपस्याएं करके अपने तपबल के बल पर बहुत सारी सिद्घियां प्राप्त की थी.
                                धरातल के गर्त में छुपी हुई कहानियाँ
                यँू तो भारत की पवित्र नदियो में उल्लेखीत माँ नर्मदा एवं माँ ताप्ती ही पश्चिम मुखी नदियाँ है . गंगा जी इलाहबाद में जिस दिशा से आती है वापस उसी दिशा में लौटती है. ठीक इसी प्रकार बैतूल जिला मुख्यालाय से मात्र छै किलो मीटर की दूरी पर स्थित बैतूल बाजार नामक शहर के किनारे से बहती सापना नदी जिस दिशा में आती है उसी दिशा में वापस बहती है . ऐसा उन्हीं स्थानों पर होता है जो धार्मिक दृष्टिï से लोगों की श्रद्घा का केन्द्र बने हुये है . नदियों और इंसानों का रिश्ता शायद सबसे पुराना रिश्ता है तभी तो नदियों के किनारे अनेक सभ्यताओं ने समय-समय पर जन्म लिया है . आज आवश्यकता है पुरातत्व विभाग की जो इन नदियों के आगोश में छुपे रहस्यों को खोज निकाले ताकि यह पता चल सके कि आज के बैतूल और भूतकाल के इस धार्मिक क्षेत्र का इतिहास क्या था? यहां यह उल्लेखनीय है कि बैतूल जिले में ही जैनियों की पवित्र मुक्तागिरी नामक तीर्थ स्थली हैं जहां पर आज भी केसर की वर्षा होती है . जिला मुख्यालय से लगे एक प्राचीन गांव बैतूल बाजार नामक पूरे देश दुनिया में एक मात्र मंदिरों का गाँव है, जहां पर बहुसंख्या में शिवमंदिर देखने को मिलते हैं. हिन्दू वेद एवं पुराणों तथा ग्रंथों में अनेक नामों से उल्लेखित इस गांव का इतिहास आज तक पता नही चल सका है . आज इस जिले की धरातल के गर्त में अनकोनेक छुपी हुई कहानियों और किस्सो को ढूंढ निकालने की आवश्यकता है .

Shiv Daham Bharling Betul

बैतूल से गुजरे थे श्री राम ..?
- रामकिशोर पंवार
बहुचर्चित रामसेतु परियोजना को लेकर उपजे विवाद की कड़ी में मध्यप्रदेश की भाजपा सरकार ने भी उस रामपथ को खोजने की शुरूआत की है जो अयोध्या से चित्रकुट होता हुआ दण्डकारण क्षेत्र से पंचवटी होते हुआ रामेश्वरम जाता है . भगवान श्री राम जिस दण्डकारण क्षेत्र से होते हुये श्री लंका तक पहँुचे थे उस पथ में आने वाले क्षेत्रो में सूर्य पुत्री ताप्ती नदी का बारह लिंग क्षेत्र भी आता है ..? इसी तथ्य को दावे के साथ प्रस्तुत करने का प्रयास किया है बैतूल जिले के उन चंद ताप्ती भक्तो ने जिनका दावा है कि भगवान श्री राम बैतूल जिले के जंगलो से होते हुये माँ ताप्ती को पार कर ही पंचवटी पहँुचे थे . अब यह प्रश्र उठता है कि क्या भगवान श्री राम बैतूल से गुजरे थे..? बैतूल के इतिहास से भली भांती परिचित कुछ जानकारो का दावा है कि श्री पंचवटी से लंका तक पहँुचने वाले उस रामपथ का बैतूल जिले से भी नाता है क्योकि  सतपुड़ा पर्वत की हरी-भरी सुरम्य वादियों में ऊंची-ऊंची शिखर श्रेणियों के मध्य से कल - कल कर बहती सूर्य पुत्री माँ ताप्ती नदी की बीच धारा में बने बारह लिंगो की स्थापना के पीछे जो आम प्रचलित कथाये एवं किवदंतियाँ तथा उससे मेल खाती एतिहासिक पुरात्तवीक अवशेषो के अनुसार भगवान श्री राम ने इस रावण के पुत्र मेघनाथ के द्रविड़ राज्य में राक्षसो से रक्षार्थ हेतू अपने अराध्य देवाधिदेव भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए आकाश गंगा सूर्यपुत्री ताप्ती नदी के किनारे रात्री विश्राम कर दुसरे दिन प्रात: सुर्योदय के पहले ताप्ती नदी में के बीचो - बीच बहती जल धारा में डूबे पत्थरो पर बारह लिंगो की आकृति को जन्म देकर उनका विधिवत पूजन एवं स्थापना की थी . भगवान श्री राम के साथ इस पूजन कार्य के पूर्व माता सीता ने जिस स्थान पर ताप्ती नदी के पवित्र जल से स्नान किया था वह आज भी सुरक्षित है तथा लोग उसे सीता स्नानागार के रूप में पूजन करते है . महाभारत की एक कथा के अनुसार मृत्युपरांत कर्ण से भगवान श्री कृष्ण ने कुछ मांगने को कहा लेकिन दानवीर कर्ण का कहना था कि भलां मैं आपसे क्यूँ कुछ माँगु मैने तो अभी तक लोगो को दिया ही है तब भगवान श्रीकृष्ण ने अपना पूर्णस्वरूप दानवीर कर्ण को दिखा कर कहा अब तो कुछ मांग लो . कर्ण ने कहा कि यदि प्रभु आप मुझे कुछ देना ही चाहते हो तो मेरी अंतिम इच्छा को पूर्ण कर दो जो यह है कि मेरा अंतिम संस्कार उस पवित्र नदी के किनारे हो जहाँ पर आज तक को शव न जला हो .. तब भगवान श्री कृष्ण ने अपनी दिव्य दृष्टिï से ताप्ती जी के किनारे अपने अंगुठे के बराबर ऐसी जगह देख जहाँ पर भगवान श्री कृष्ण ने पैरो के एक अंगुठे पर खड़े रह कर अपनी हथेली पर दानवीर कर्ण का अंतिम संस्कार किया. रामयुग में जटायु तथा कृष्ण युग में कर्ण दो ही ऐसे जीव रहे जिन्होने भगवान राम और श्याम की बाँहो में दम तोड़ा. प्रस्तुत कथा से इस बात का पता चलता है कि ताप्ती कितनी पवित्र नदी थी . दुसरी दृष्टिï से देखा जाये तो पता चलता है कि महाभारत की इस घटना के अनुसार सूर्यपुत्र दानवीर कर्ण का अंतिम संस्कार भी उसकी अपनी बहन ताप्ती के किनारे सम्पन्न हुआ. सूर्य पुत्री ताप्ती का महत्व इस क्षेत्र कि जनता एवं पुराणो में गंगा - नर्मदा के समकक्ष है . पुराणो में इस बात का जिक्र है कि गंगा जी में स्नान का , नर्मदा जी के दर्शन का तथा सूर्य पुत्री माँ ताप्ती का नाम मात्र स्मरण करने से उनके समकक्ष पूर्ण  लाभ मिलता है. जनश्रुत्रि एवं जानकारो तथा इतिहास के विशेषज्ञो के अनुसार इस द्रविड़ राज्य में असुरी शक्ति का जबरदस्त आंतक रहता था वे किसी भी ऋषि - मुनियो के पूजा पाठ यहाँ तक की उनके द्घारा करवाये जाने वाले यज्ञो तक में व्यवधान पैदा कर देते थे. असुरो के अराध्य देवाधिदेव महादेव को भगवान श्री राम ने अपने द्घारा चौदह वर्ष के वनवास के दौरान वनगमण के दौरान स्वंय तथा अनुज लक्ष्मण एवं जीवन संगनी सीता की रक्षा के लिए देवाधिदेव महादेव की जहाँ - तहाँ पूजा अर्चना की. असुर केवल भोलनाथ भगवान जटाशंकर महादेव के पूजन कार्य में व्यवधान नहीं डालते थे इसी मंशा के तहत मर्यादा पुरूषोत्तम श्री राम ने राम पथ के दौरान शिव लिंगो का पूजन किया. ताप्ती नदी की बीच धारा में पाषण शीला पर बारह शिव लिंगो की स्थापना की. वैसे आमतौर पर रामायण में श्री राम युग में श्रीराम द्घारा मात्र रामेश्वरम में ही शिव लिंग की स्थापना का जिक्र सुनने एवं पढऩे को मिलता है लेकिन पूरे विश्व के बारह ज्योर्तिलिंगो को एक ही स्थान पर वह भी सूर्यपुत्री माँ ताप्ती नदी की बीच तेज बहती धार में मौजूद पाषण शीलाओं पर ऊकेरा जाना तथा उनका आज भी मूल स्वरूप में बने रहना किसी चमत्कार से कम नहीं है . वैसे आम तौर पर कहा जाता है कि भगवान श्री राम ने शिवलिंगो की स्थापना करके यह संदेश दिया कि देवाधिदेव शिव ही राम के ईश्वर है जबकि शिव भगवान ने ही कहा कि राम ही ईश्वर है . बरहाल बात रामेश्वरम के ज्योर्तिलिंग की हो या ताप्ती नदी बीच तेज बहती धारा के मध्य पाषणशीलाओं पर स्थापित बारह लिंगो की भगवान श्री राम ने अपने अराध्य देवाधिदेव जटाशंकर उमापति महादेव के प्रति अपने अगाह प्रेम को जग जाहिर कर डाला .
        ताप्ती नदी के बारे में पौराणिक कथाओं में उल्लेखित कथा के बारे में पता चला कि एक समय वह था जब कपिल मुनि से शापित जलकर नष्टï हो पाषाण बने अपने पूर्वजों का उद्धार करने इस पृथ्वी लोक पर, गंगा जी को लाने भागीरथ ने हजारों वर्ष घोर तपस्या की थी. उसके फलस्वरूप गंगा ने ब्रम्ह कमण्डल (ब्रम्हलोक से) धरती पर, भागीरथ के पूर्वजों का उद्धार करने आने का प्रयत्न तो किया परंतु वसुन्धरा पर उस सदी में मात्र ताप्ती नदी की ही सर्वत्र महिमा फैली हुई थी . ताप्ती नदी का महत्व समझकर श्री गंगा पृथ्वी लोक पर आने में संकुचित होने लगी, तदोउपरांत प्रजापिता ब्रम्हा विष्णु तथा कैलाश पति शंकर भगवान की सूझ से देव ऋषि परमपिता ब्रम्हा के पुत्र नारद ने ताप्ती महिमा के सारे ग्रंथ चोरी कर लिये जिसके चलते उन्हे पूरे शरीर में कोढ़ हो गई थी जिससे उन्हे मुक्ति भी सूर्यपुत्री करी जन्म स्थली मुलताई के नारद कुण्ड में स्नान उपरांत मिली थी. आज भी ताप्ती जल में एक विशेष प्रकार का वैज्ञानिक असर पड़ा है, जिसे प्रत्यक्ष रूप से स्वंय भी आजमाईश कर सकते है. ताप्ती जल में मनुष्य की अस्थियां एक सप्ताह के भीतर घुल जाती है. इस नदी में प्रतिदिन ब्रम्हामुहुर्त में स्नान करने से समस्त रोग एवं पापो का नाश होता है. तभी तो राजा रघु ने इस जल के प्रताप से कोढ़ जैसे चर्म रोग से मुक्ति पाई थी. ग्राम खेड़ी सांवलीगढ़ से ग्यारह किलोमीटर दूर त्रिवेणी भारती बाबा की तपोभूमि ताप्ती घाट जो इस क्षेत्र में तो क्या संपूर्ण बैतूल जिले में बहुधा जानी पहचानी जगह है. विकासखंड भैंसदेही के अंतर्गत आने वाले इस स्थान से पूर्व दिशा की ओर यहां से लगभग चार किलोमीटर पैदल चलकर या फिर मोटर वाहनों से भी पहुंचा जा सकता है. बारहलिंग नामक स्थान पर जो ताप्ती नदी के तट पर स्थित है, यहां कि प्राकृतिक छठा सुन्दर मनमोहक दृश्य आने-जाने वाले यात्रियों का मन मोह लेते है. घने हरियाले जंगलो से आच्छादित प्रकृति की अनुपम छटा बिखरेती हुई ताप्ती नदी शांत स्वरों में पूर्व से पश्चिम दिशा की ओर बहती है . चौदह वर्ष के वनवास के दौरान बारह लिंग नामक इस स्थान पर ठहरे हुए भगवान श्री राम ने  स्वंय अपने अराध्य देवाधिदेव महादेव के बारह लिंगो की कार्तिक माह की पूर्णिमा के दिन पाषण शीला पर आकृति ऊकेरी थी जो आज भी ज्यों - की त्यों है. राम निर्मित उक्त बारह शिवलिंगो तथा सीता स्नानागार आज भी लोगो की आस्था के केन्द्र है राज्य सरकार को चाहिए कि जब वह रामपथ को खोज रही है तब इन .शुशुप्त रूप से आज भी विद्यमान है इन बारह लिंगो एवं सीता स्नानागार की उपेक्षा क्यो ..? कथाओ एवं पुराणो के अनुसार श्री राम ने वनो में उगने वाले फलो में से एक को जब माता सीता को दिया तो उन्होने इसका नाम जानना चाहा तब भगवान श्री राम ने कहा कि हे सीते अगर तुम्हे यह फल यदि अति प्रिय है तो आज से यह सीताफल कहलायेगा. आज बैतूल जिले के जंगलो एवं आसपास की आबादी वाले क्षेत्रो में सर्वाधिक संख्या में सीताफल पाया जाता है.